जीवन-मरण से परे नारायण
कारागार में जन्मे थे
न योजना केवल लीला थी
वे नव-निर्माण के
संकल्प में दर्शे थे ।
निज
जीविका-क्रम से जता दिया
ना प्रेम का मतलब पाना
है —
वैराग्य ही चित्त का
शिखर स्वरूप है
यही मुक्ति-पथ की आराधना
है।
मथुरा,
द्वारका या कुरुक्षेत्र —
योध्या वहीं जिसने मन को सशक्त
किया
दिया गीता-ज्ञान विश्व को समझाने
संत वही जिसने भाव-शून्य अपना लिया।
कभी
बाँसुरी, कभी सुदर्शन —
कभी मंद-मंद मुस्कुराए थे
मौन में उनके सभी उत्तर थे
जो शब्द न कभी कह पाए थे।
जिसने मन में कृष्ण रमाया
उनका सुझाया मार्ग लिया —
जपा राम नाम या शिव-शक्ति
का
मोक्ष-पथ को भाँप
लिया।
चारु – सर्वदा विष्णोर्भक्ता
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